प्रानपीर बादशाह का मकबरा

                                                        जर्जर होता हिसार शहर का प्राचीन  मकबरा                                             
 ऐतिहासिक  हिसार  का वर्चस्व सिंधु सभ्यता के समय से है  मध्यकालीन समय में भी हिसार काफी महत्वपूर्ण रहा है  | 14 वीं शताब्दी में बना  यह मकबरा प्रानपीर बादशाह का है | फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के समय के बने ऐतिहासिक इमारतों से भी पहले मकबरो और मस्जिदों का निर्माण शुरु  हो गया था |  प्रानपीर बादशाह का यह मकबरा शहर के सरकारी कॉलेज के पीछे स्तिथ हे इसका निर्माण शेर बहलोल दाना ने अपना गुरु प्रानपीर बादशाह की याद में बनवाया ताकि उनके अनुयायी वहां आकर प्राथना और याद कर सके  | प्रानपीर बादशाह 13 -14 वीं शताब्दी के प्रशिद्ध  आध्यात्मिक  गुरु और सूफी संत  थे जिन्होंने जगह जगह जाकर धर्म और समाज हित के  लिए उपदेश दिए | शेर बहलोल दाना ने उन्ही से शिक्षा ली और वह अपने गुरु के  दिखाए नक़्शे कदम पर चले | शेर बहलोल दाना भी एक प्रशिद्ध  संत बने उन्होंने  दिल्ली सियासत में हो रही हलचल का अनुमान पहले से लगा लिया  था और कहा था की गियासुद्दीन तुगलक दिल्ली सल्तनत  का सुल्तान बनेगा और ऐसा ही हुआ | शेर बहलोल दाना ने अपने गुरु प्रानपीर से  प्रभावित होकर इसी जगह पर कई मस्जिदों और उनके मकबरो का  निर्माण करवाया | प्रानपीर बादशाह  का मकबरा शिव मंदिर  टूटे हुए अवशेषों द्वारा  बनवाया गया था इसमें कब्र होने क कोई साक्ष्य नहीं मिलते परंतु माना  जाता हे की प्रानपीर  बादशाह को वही जमीं में दफनाया गया तथा बाद में मकबरे का निर्माण करवाया गया  | तथा यह मकबरा हरियाणा के प्राचीन मकबरो में  से एक हे  तथा हिसार जगह  का पहला मकबरा  था |

           इसकी वास्तुकला इंडो - इस्लामिक वास्तुकला का  नमूना हे | उस समय में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने एक प्राचीन समय के शिव मंदिर को तोडा था | शेर बहलोल ने उन्ही अवशेषों से प्रानपीर  बादशाह मकबरे का निर्माण करवाया था | इसके निर्माण में लाल पत्थर, तथा सफ़ेद कंकर पत्थरों का उपयोग किया गया हे | यह चतुर्भुज मंच पर बनवाया गया | इसमें चारो तरफ से मेहराबदार दरवाज़े हे दक्षिण मुख्य द्वार हे | मकबरे क आधे भाग में ईंटो का परयोग  हे तथा आधे भाग में सफ़ेद पत्थर का | मकबरे में शानदार निकासी क साथ रौशनी की व्यवस्था क लिए आले  तथा मकबरे क ऊपर अष्टकोणीय गुम्बद बना हुआ है  |
   




   परन्तु आज मकबरे की हालत काफी दयनीय बनी हुई हे | मकबरे का काफी भाग टूट चूका हे छोटे  पौधे जगह जगह मकबरे में उगे हुए हे मकबरे के अंदर काफी गंदगी हे आस पास के लोगो में जागरूकता की कमी और सरकर तथा विभाग की अनदेखी और सरंक्षण के अभाव के कारण मकबरे की  स्तिथि काफी जर्जर हो चुकी हे | तथा आवश्यकता हे प्राचीन स्थलों को एक नया आयाम देने की ताकी ऐसी  विरासतों को  भावी पीढ़ी के लिए बचाया जा सके |



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